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सोमवार, 4 जून 2012

चाणक्य नीति

     चाणक्य नीति  कहती हैं कि  -
     अंतर्गतमलो दृष्टस्तीर्थस्नानशतैरपि .

     न शुध्यति यथा भाण्डं सुराया दाहितं च यत् ..
     अर्थात- जिसके मन में मैल भरा है ऐसा दुष्ट व्यक्ति चाहे कितनी बार भी तीर्थ पर जाकर स्नान कर लें पर पवित्र नहीं हो पाता जैसे  मदिरा का पात्र आग में तपाये जाने पर भी पवित्र नहीं होता !
    न दुर्जनः साधुदशामुपैति बहुप्रकारैरपि शिक्ष्यमाणः.

   आमूलसिक्तः पयसा घृतेन न निम्बवृक्षो मधुरात्वमेति ..
    अर्थात- दुष्ट व्यक्ति को कितना भी सिखाया या समझाया जाये पर वह अपना अभद्रता का व्यवहार नहीं छोड़कर सज्जन नहीं बन सकता जैसे नीम का वृक्ष, दूध और घी से सींचा जाये तो भी उसमें मधुरता नहीं आती .

''भय'' समस्या का समाधान नहीं हैं

      ''भय'' समस्या का समाधान नहीं हैं :- ''भय'' का आधार बना कर न जिए ! आप बहुत देखे या सुने होंगे की जो व्यक्ति ''भय'' से भयभीत होते हैं उनका जीवन ''भय'' के कारण नरक हो गया हो !       ''प्रेम'' अगर स्वर्ग का द्वार है तो ''भय'' नरक का द्वार हैं !कुछ हद तक परिवार की , समाज की, राज्य की सारी व्यवस्था भय-प्रेरित है ! हमने डरा कर लोगों को अच्छा बनाने की कोशिश की है ! और डर से बड़ी कोई बुराई नहीं है ! यह तो ऐसे ही है जैसे कोई विष से लोगों को जिलाने की कोशिश करे !  ''भय'' सबसे बड़ा पाप है ! ''भय'' से कुछ भी नष्ट नहीं होता ! अर्थात, मूल रूप से कुछ भी परिवर्तन नहीं होता , सिर्फ दब जाता है ! और जब ''भय'' की स्थिति बदल जाती है तो बाहर आ जाती है !    
     ''भय" से भयभीत होने के बजाय उनका मुकाबला करें ! ''भय'' से डरे नहीं ! डरा हुआ व्यक्ति मरे हुए व्यक्ति के समान हैं !

व्यक्तित्व

व्यक्तित्व = शरीर ,मन, बुद्धि और आत्मा ! इन सभी के मिलन से ही व्यक्ति के 'व्यक्तित्व' का निर्माण होता हैं !!