''भय'' समस्या का समाधान नहीं हैं :- ''भय'' का आधार बना कर न जिए ! आप बहुत देखे या सुने होंगे की जो व्यक्ति ''भय'' से भयभीत होते हैं उनका जीवन ''भय'' के कारण नरक हो गया हो ! ''प्रेम'' अगर स्वर्ग का द्वार है तो ''भय'' नरक का द्वार हैं !कुछ हद तक परिवार की , समाज की, राज्य की सारी व्यवस्था भय-प्रेरित है ! हमने डरा कर लोगों को अच्छा बनाने की कोशिश की है ! और डर से बड़ी कोई बुराई नहीं है ! यह तो ऐसे ही है जैसे कोई विष से लोगों को जिलाने की कोशिश करे ! ''भय'' सबसे बड़ा पाप है ! ''भय'' से कुछ भी नष्ट नहीं होता ! अर्थात, मूल रूप से कुछ भी परिवर्तन नहीं होता , सिर्फ दब जाता है ! और जब ''भय'' की स्थिति बदल जाती है तो बाहर आ जाती है !
''भय" से भयभीत होने के बजाय उनका मुकाबला करें ! ''भय'' से डरे नहीं ! डरा हुआ व्यक्ति मरे हुए व्यक्ति के समान हैं !
''भय" से भयभीत होने के बजाय उनका मुकाबला करें ! ''भय'' से डरे नहीं ! डरा हुआ व्यक्ति मरे हुए व्यक्ति के समान हैं !
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