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रविवार, 26 अगस्त 2012

॥ दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् (विश्वसारतन्त्र) ॥


मेरे आत्मीय बंधुओं , आपको शुभ कामनाओं के साथ एक दुर्लभ योग की जानकारी दे रहा हूँ....लाभान्वित हो...
...प्रिय बंधुओं , भौमवती ( मंगलवारी ) अमावस्या को अर्धरात्रि में जब चन्द्रमा शतभिषा नक्षत्र में हो , उस समय इस स्तोत्र को गोरोचन , लाक्षा ( पीपल की लाख ) , कुंकुम , सिन्दूर , कपूर , गोघृत व गो दुग्ध , चीनी , शहद . इन समस्त पदार्थों को एकत्र कर के इनकी स्याही बना कर , भोज पत्र पर सोने या अनार की कलम से लिख कर , चांदी या सोने के ताबीज में भर कर जो प्राणी धारण करता है वह शिव तुल्य हो जाता है. एवं सम्पत्तिशाली होता है. दैहिक , दैविक, भौतिक इन त्रय तापों से मुक्ति मिलती है. दरिद्रता का नाश होता है. यह एक दुर्लभ योग है. मूलत: इसका इसका उल्लेख विश्वसार तंत्र में है ..गीता प्रेस, गोरखपुर की छपी श्री दुर्गा सप्तशती में पृष्ठ ९ -११ पर भी उल्लेख है..जो बंधु इसका लाभ उठाना चाहे वह इसका निर्माण कर लेन या योग्य पंडित जी से करा ले...
....इस वर्ष यह योग श्री शुभ संवत २०६८ , फागुन कृष्ण अमावस्या , मंगलवार , अंगरेजी तारीखानुसार २१ व २२ फरवरी २०१२ की मध्य रात्रि को रात्रि १२ / २२ से रात्रि चार बजकर ०७ मिनट तक रहेगा .
....इसमें महानिशीथ काल का संयोग भी १२/२२ से १२/४१ तक रहेगा ....
....२१ व २२ फरवरी २०१२ की मध्य रात्रि को रात्रि १२ / २२ से रात्रि चार बजकर ०७ मिनट के बीच इसका निर्माण करे.....
.....स्तोत्र इस प्रकार है, लिखने में कुछ त्रुटि हो सकती है, क्योंकि कुछ अक्षर नहीं बनते है, अत: श्री दुर्गा सप्तशती खरीद कर वहाँ से लिखे.....
....॥ दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् (विश्वसारतन्त्र) ॥

॥ ॐ ॥

॥ श्री दुर्गायै नमः ॥

॥ श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥

॥ ईश्वर उवाच ॥

शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने ।
यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ॥ 1 ॥

ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी ।
आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ॥ 2 ॥

पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः ।
मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः ॥ 3 ॥

सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्द स्वरूपिणी ।
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः ॥ 4 ॥

शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा ।
सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ॥ 5 ॥

अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती ।
पट्टाम्बरपरिधाना कलमञ्जरीरञ्जिनी ॥ 6 ॥

अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी ।
वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ॥ 7 ॥

ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा ।
चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः ॥ 8 ॥

विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा ।
बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहन वाहना ॥ 9 ॥

निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी ।
मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ॥ 10 ॥

सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी ।
सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा ॥ 11 ॥

अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी ।
कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः ॥ 12 ॥

अप्रौढ़ा चैव प्रौढ़ा च वृद्धमाता बलप्रदा ।
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ॥ 13 ॥

अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी ।
नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ॥ 14 ॥

शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी ।
कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी ॥ 15 ॥

य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम् ।
नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ॥ 16 ॥

धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च ।
चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ॥ 17 ॥

कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् ।
पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम् ॥ 18 ॥

तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि ।
राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात् ॥ 19 ॥

गोरोचनालक्तककुङ्कुमेव सिन्धूरकर्पूरमधुत्रयेण ।
विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः ॥ 20 ॥

भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते ।
विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् संपदां पदम् ॥ 21 ॥

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