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रविवार, 26 अगस्त 2012

ज्योतिष शास्त्र आलेख संख्या - ००१


..............................आलेख संख्या - ००१ ...........................
     यहाँ पर ज्योतिष शास्त्र की प्रारम्भिक बाते लिखी जा रही है . आकाश की ओर दृष्टि डालते ही मानव मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि यह ग्रह , नक्षत्र , क्या है, तारे टूट कर क्यों गिरते है . सूर्य प्रतिदिन पूर्व में ही क्यों उदय होता है . मानव स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि वह जानना चाहता है कि ' क्यों ? कैसे ? क्या हो रहा है ? क्या होगा ? मानव केवल प्रत्यक्ष बातों को जान कर ही संतुष्ट होता बल्कि जिन बातों से प्रत्यक्ष लाभ होने की संभावना नहीं है , उनको जानने के लिए भी उत्सुक रहता है .
..... मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण करने से ज्ञात होता है कि, मानव की इसी जिज्ञासा ने उसे ज्योतिष शास्त्र के गंभीर रहस्य का उदघाटन करने के लिए प्रेरित किया .
..... ज्योतिष शास्त्र की व्युतपत्ति " ज्योतिषां सूर्यादिग्रह
ाणां बोधकं शास्त्रं "... अर्थात , सूर्यादि ग्रह और काल का बोध करने वाले शास्त्र को ज्योतिष शास्त्र कहा जाता है . इसमें प्रधानत: ग्रह, नक्षत्र , धूमकेतु , आदि ज्योति: पदार्थों का स्वरुप , संचार, परिभ्रमण काल, ग्रहण और स्थिति आदि समस्त घटनाओं का निरूपण एवं इनके संचारानुसार शुभाशुभ फलों का कथन किया जाता है.
..... भारतीय ज्योतिष की परिभाषा - भारतीय ज्योतिष की परिभाषा के स्कंध त्रय - १- सिद्धांत, २- होरा , ३- संहिता बाद में शोधोपरांत स्कंध पञ्च- सिद्धांत , होरा, संहिता, प्रश्न और शकुन यह पांच अंग माने गए है .
..... यदि विराट रूप में लिया जाय तो विज्ञान का १- मनोविज्ञान २- जीव विज्ञान ३- पदार्थ ( भौतिक ) विज्ञान , ४- रसायन विज्ञान , ५- चिकित्सा विज्ञान भी इसी के अंतर्भूत है..

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