WELCOME

मुख्य पृष्ठ गुरु-महिमा ज्योतिष आगम-शास्त्र (तंत्र) धर्म क्यों नीति श्रृंगार वैराग्य चित्र संग्रह

सोमवार, 4 जून 2012

चाणक्य नीति

     चाणक्य नीति  कहती हैं कि  -
     अंतर्गतमलो दृष्टस्तीर्थस्नानशतैरपि .

     न शुध्यति यथा भाण्डं सुराया दाहितं च यत् ..
     अर्थात- जिसके मन में मैल भरा है ऐसा दुष्ट व्यक्ति चाहे कितनी बार भी तीर्थ पर जाकर स्नान कर लें पर पवित्र नहीं हो पाता जैसे  मदिरा का पात्र आग में तपाये जाने पर भी पवित्र नहीं होता !
    न दुर्जनः साधुदशामुपैति बहुप्रकारैरपि शिक्ष्यमाणः.

   आमूलसिक्तः पयसा घृतेन न निम्बवृक्षो मधुरात्वमेति ..
    अर्थात- दुष्ट व्यक्ति को कितना भी सिखाया या समझाया जाये पर वह अपना अभद्रता का व्यवहार नहीं छोड़कर सज्जन नहीं बन सकता जैसे नीम का वृक्ष, दूध और घी से सींचा जाये तो भी उसमें मधुरता नहीं आती .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें