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रविवार, 26 अगस्त 2012

!! श्री गुरु शरणं ... श्री हरि शरणं ... श्री गुरु शरणं !!

एक गुरु था जो अपने शिष्यों को तलवार चलाने की शिक्षा देता था . उसका एक शिष्य भी उससे जब तलवार चलाना सीख चुका तो एक दिन अपने गुरु से बोला कि गुरु जी अब तो आपने सारे दांव मुझे सिखा दिए कि और भी कोई दांव बचा है. गुरु ने कहा कि अब मैंने तुमको सभी दांव सिखा दिये अब और कुछ नहीं बचा . तब शिष्य बोला कि गुरु जी तब फिर आप अब गुरु कहाँ रह गए अब तो आपको चाहिए कि  मुझे गुरु गद्दी सौंप दे . तब गुरु ने कहा कि इसके लिए तुम्हे मुझसे मुकाबला करना होगा, क्योंकि गुरु गद्दी उसे ही सौंपी जाती है , जो मुकाबले में विजय प्राप्त करे . शिष्य ने कहा ठीक है समय और स्थान तय करे. १५ दिन बाद का समय और गाँव का मैदान तय हो गया . इधर गुरु ने गाँव के लोहार को बुला कर उसे २० फुट लंबी म्यान बनाने का आर्डर दे दिया . इधर शिष्य भी ध्यान लगाए था कि गुरु जी की क्या गतिविधियां है. जब उसने यह सुना तो तुरंत अनुमान लगा लिया कि गुरु जी २० फुट लंबी तलवार से मुझे हराना चाहते है. तब उसने दूसरे एक लोहार को २५ फुट लंबी म्यान और तलवार बनाने का आर्डर दे दिया . १५ दिन बाद दोनों लोग युद्धस्थल पर कमर में अपनी अपनी तलवार म्यान में रख कर जा पहुंचे मजमा भी लग गया . जब दोनों आमने सामने आ गए तो शिष्य ने हंस कर कहा कि गुरु जी आप मुझे धोखे में रखकर २० फुट लंबी तलवार से अब नहीं हरा पायेंगे मैंने आपका मतलब जान लिया है और २५ फुट लंबी तलवार ले कर आया हूँ . गुरु ने कहा कि चलो फिर युद्ध शुरू हो. तब शिष्य ने फुर्ती दिखाते हुए म्यान से अपनी तलवार निकालने की कोशिश की , लेकिन तलवार कहाँ निकलनी थी क्योंकि हाथ तो केवल सिर के ऊपर तक ही जा सकता है, वह असहाय हो गया . फिर क्या गुरु ने २० फुट लंबी म्यान से २ फुट की तलवार निकाल कर शिष्य की गर्दन पर रख दी और बोला कि बोल मै गुरु या तू . इस प्रेरक कथा से यह निष्कर्ष निकलता है कि गुरु हमेशा गुरु होता है..

    श्री गुरु शरणं ...

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