... सृष्टि
के मूल कारण - इस दृश्यमान जगत का मूल कारण परमेश्वर को माना गया है .
परब्रह्म अपनी शक्ति माया के प्रभाव से पञ्च महाभूतों की उत्पत्ति करता है .
इन्ही पञ्च महाभूतों से यह अग - जग संसार बन् जाता है . यह ५ तत्व इस
प्रकार है ..१- आकाश - इन ५ तत्वों में सर्वप्रथम आकाश की उतपत्ति हुई ,
आकाश महत् तत्व से बना है . " एतस्मान्महत: आकाश: संजात:" ..इस श्रुति से
प्रमाणित होता है कि , महातत्व से आकाश की उत्पत्ति हुई . आकाश तत्व केवल
सूक्ष्म तत्व ही है . पृथ्वी, जल , आदि की तरह इसके सूक्ष्माकाश तथा
स्थूलाकाश आदि भेद नहीं होते, यह केवल एक है . अखंड है और आकाश नाम से
विख्यात है . इसका गुण " शब्द" होता है .. आकाश का प्रत्यक्ष नहीं होता . ,
वह अपने गुण शब्द से जाना जाता है .. कर्नेंन्द्रिय ( कान) में व्याप्त जो
आकाश है और जहाँ पर शब्द उत्पन्न हो - कोई बोले या अन्य किसी प्रकार से
शब्द हो ..उस आकाश के बीच
यदि कोई व्यवधान न
होगा तो शब्द सुनाई देगा .. जहाँ व्यवधान होगा वहाँ शब्द सुनाई न देगा ...
जैसे बीच में दीवाल या पानी के अंदर शब्द होने से वह सुनाई नहीं देता ..
...आकाश व्यापक होता है , आकाश से वायु , वायु से तेज ( अग्नि) , तेज से
जल , तथा जल से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है ..कारण पहले होता है और कार्य
बाद में...आकाश "कारण" होने से शेष चार तत्व "कार्य" है ..कारण ..कार्य में
स्थिर रूप से सदैव होता है ...यही कारण है कि घट - कुम्भ आदि मिट्टी के
रूपांतर मात्र है . अत: ये कार्य है और मिट्टी की इनमे सत्ता है...पृथ्वी ,
जल, तेज और वायु में आकाश व्याप्त है अर्थात घुसा हुआ है , यह आकाश की परं
व्यापकता है .कि समस्त चराचर जगत में आकाश है .....क्रमश: जारी रहेगा ..
...आकाश व्यापक होता है , आकाश से वायु , वायु से तेज ( अग्नि) , तेज से जल , तथा जल से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है ..कारण पहले होता है और कार्य बाद में...आकाश "कारण" होने से शेष चार तत्व "कार्य" है ..कारण ..कार्य में स्थिर रूप से सदैव होता है ...यही कारण है कि घट - कुम्भ आदि मिट्टी के रूपांतर मात्र है . अत: ये कार्य है और मिट्टी की इनमे सत्ता है...पृथ्वी , जल, तेज और वायु में आकाश व्याप्त है अर्थात घुसा हुआ है , यह आकाश की परं व्यापकता है .कि समस्त चराचर जगत में आकाश है .....क्रमश: जारी रहेगा ..
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