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गुरुवार, 9 जून 2011

अग्य: सुखमाराध्य सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञ: ! ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रम्हापि च तं नरं न रञ्जयति !

अग्य: सुखमाराध्य सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञ: ! ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रम्हापि च तं नरं न रञ्जयति !...... अर्थात हिताहित ज्ञानशून्य नासमझ को समझाना बहुत आसान है, उचित और अनुचित को जानने वाले ज्ञानवान को राज़ी करना और भी आसान है, किन्तु थोड़े से ज्ञान से अपने को पंडित समझने वाले को विधाता भी नहीं संतुष्ट कर सकता है. संसार में तीन तरह के मनुष्य होते हैं. १- अज्ञ: , २- सुज्ञ , ३- अल्पज्ञ . १- जिसे अपने भले बुरे का ज्ञान नहीं होता जो निरा मूर्ख होता है  उसे अज्ञ कहते हैं. २- जिसे उचित और अनुचित का ज्ञान होता है उसे सुज्ञ कहते हैं. ३- जो अज्ञ और सुज्ञ के बीच का होता है , जिसे थोड़ा सा ज्ञान होता है ना तो वह पूरा पंडित होता है और ना ही निरा मूर्ख होता है उसे अल्पज्ञ कहते हैं.
" An ignorant person is easy to please, It is still easier to please a man of learning, but even the God Brahma can not please a man stained with the possession of partial talents. 

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