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शनिवार, 11 जून 2011

धन की गतियाँ

धन की गतियाँ ३ हैं. १- भोग २- दान ३- विनाश. यदि विधाता ने धन दिया हो तो उसका भोग करना चाहिए जो धन भोग से बचे उसका दान करना चाहिए. यदि धन का न भोग किया और न दान किया तो फिर उसका विनाश तय है इसमें कोई संशय नहीं है.
मनुष्य के शरीर में आलस्य ही महाशत्रु है. उद्योग के सामान मनुष्य का दूसरा मित्र नहीं है क्योंकि उद्योग करने से दुःख पास भी नहीं फटकता है. काटा छांटा हुआ वृक्ष फिर पुष्पित और पल्लवित हो जाता है इस बात को विचार कर सज्जन लोग विपत्ति में भी नहीं घबराते हैं.
यद्यपि मनुष्यों को कर्मानुसार ही फल मिलता है और बुद्धि भी कर्मानुसार ही हो जाती है तथापि बुद्धिमानों को खूब सोच विचार कर ही कर्म करना चाहिए.
एक सर्प पिटारे में बंद था, उसे अपने जीने की आशा बिलकुल न थी. शरीर दुखी था भूंख के मारे इन्द्रियाँ शिथिल थीं, तभी रात के समाया एक चूहा पिटारे में छेद करके घुस गया. सर्प उसे खा कर तृप्त हो गया और चूहे के द्वारा किये गए छेद से बाहर निकल गया. इस उदाहरण से मालूम होता है की प्राणियों की वृद्धि और क्षय का कारण केवल विधाता ही है.

There was a snake which had lost all hope, its body all aching owing to its having been imprisoned in a cage and its senses made feeble by hunger, A mouse having made a hole into the cage at night enterd into its mouth of itself. The snake its hunger satisfied with the flesh of the mouse, speedly went out of that very hole and was free. Thus see , o men , Fate is the only cause of people's prosperity and loss. 

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